एक ख़याल
-मञ्जूषा हांडा
तू अपनी सोचों को उड़ान भरने तो दे ज़रा ,
ख़याल खुद-ब-खुद बन जाएगा !
इन ख्यालों की जुस्त-ज़ू में जो उलझा रहा ,
हो सकता है , जीवन का कोई रहस्य सुलझ जाएगा !
यह ख़याल ही तो है , जो दुनिया को
विभिन्न प्रकारों में दर्शाता है !
जीवात्मा हेतु जो अर्थ प्रकाशक है ,
वैसी ही व्याख्या करवाता है !
या फिर , जो स्वयं के अनुरूप हैं
जरूरतें , इच्छाएं , प्रतिज्ञाएं हैं
लक्ष्य , परिणाम , अभिप्रायें हैं
ख़याल इन्ही के इर्द-गिर्द मंडराता हैं?
-मञ्जूषा हांडा
तू अपनी सोचों को उड़ान भरने तो दे ज़रा ,
ख़याल खुद-ब-खुद बन जाएगा !
इन ख्यालों की जुस्त-ज़ू में जो उलझा रहा ,
हो सकता है , जीवन का कोई रहस्य सुलझ जाएगा !
यह ख़याल ही तो है , जो दुनिया को
विभिन्न प्रकारों में दर्शाता है !
जीवात्मा हेतु जो अर्थ प्रकाशक है ,
वैसी ही व्याख्या करवाता है !
या फिर , जो स्वयं के अनुरूप हैं
जरूरतें , इच्छाएं , प्रतिज्ञाएं हैं
लक्ष्य , परिणाम , अभिप्रायें हैं
ख़याल इन्ही के इर्द-गिर्द मंडराता हैं?