कल की सुबह कुछ जवाबों का इंतज़ार करती है ...
कल की सुबह नया पैग़ाम लाएगी आओ ख़्वाबों को तराशें , मैं भी तराशुं , तुम भी तराशो कोई बुत इरादों की , पत्थर की लकीरों में क़ैद जो , रिहाई पाकर , इन लकीरों को अर्थ दे ही जाएगी ... ज़िन्दगी जिंदा दिली का नाम है ज़िन्दगी जिंदा दिली का नाम है, जोश की सीड़ियाँ चडके कुछ तारे चुन लो ज़रा यहाँ रात का आना भी आम है, समंदर की गहराइयों में डूबकर सूरज को निकाल लाओ ज़रा रंगों से भरे कुदरत के नज़ारे हैं, इन्हें फूलों से निकाल जीवन को रंगों ज़रा जुगनू के पिटारे इस दुनिया में तुम्हारे हैं, इन्हें चुरा रोशन अंधेरों को करदो ज़रा बादलों का काफ़िलाह गगन में प्यारा है, इन्हें पंख बना पर्वतों के शिखर छूलो ज़रा भीतर हमारे खिज़ां हरपल रहती है, इन पत्तों को झड़ने दो क़ल्क़ल दरिया बहा ले जाए ज़रा दिल की बात यह सारी है, दिल की बातों में आ जाओ ज़रा ज़िन्दगी यह तुम्हारी है , इसे दिल की मर्ज़ी से जीलो ज़रा मतलब:
खिज़ां - पतझड़ इश्क-ए -खुदाई
-मञ्जूषा हांडा अब ना रंजिश ही कोई ना कोई बात अनकही बे-आसरा से ख़याल यहीं उन्में डूबी खुश्क तन्हाई पर दिल के साज़ बजते हैं, शिकस्त-ए-साज़ होके भी जुनून-ए-इश्क में अर्श-ए-ज़िम रहने दें मीठे दर्द का साथ ही सही माना, इश्क की गहराई को नापे यह पहर जुदाई के पर एहसास तुम्हें ना पाने के, सबसे अभागे पल जुदाई के ले चलो खयालों की बस्ती में बसते हो तुम जिन खयालों में उपजे बीज खयालों के, हवा-ए-बहार ले आएँ कई बाग़ छिपे इस दिल में सपने, यह पाक तस्सव्वुर की कारीगरी, रचें जब हसरतें कुछ और ही पाने की है कोशिश यही, ढूँढ आशाएँ अधूरी, उम्मीद के शरारों से ठन्डे दिलों को गरमाने की जज़्बा-ए-इश्क की गहराई में जाने हम डूबे कबसे वो हज़ारों दिल जो लिए हुए, ख्वाहिशों की दौलत में इज़ाफ़े बड़े हुए हकीक़त को अपनी चिलमन में छिपाया पर दिल से फरेब करना ना आया सर-ए-आईना अक्स ने सवाल उठाया, तू हम-ता क्यों ना बन पाया तपिश तेरी एक आहट की बस एक झलक दिख जाए कहीं कड़ियाँ जुड़ जायेंगी , जो अधूरी आशाओं में हैं जकड़ी वाबस्ता तुम्हारे हुस्न से पल्कों की चिल्मन है आज भी गम हैं छुपे छुपे से छुपी छुपी सी है तन्हाई तुम्हारे सपनों के इन्द्रधनुष, जो इस दिल ने हैं दिखलाये गम हुए सतरंगी, और सतरंगी सी तन्हाई मुहोबत का किस्सा यूँही, है हुआ मशहूर नहीं बे-अंदाज़ा बक्शे वही है हमदर्दी जिसकी आदत सी बन गयी मेरी कविता "इंसानियत चाहे हर इंसान", भोपाल की हिंदी इ-मैगज़ीन गर्भनाल के ७६ प्रकाशन में! यह कविता ४३ पन्न्हे पर है!
वक़्त ...
-मञ्जूषा हांडा वोह वक़्त जो धुंध से घिरा है तन्हाई में हरपाल दीखता है, मुज्महिल हुए ढूँढें लम्हा यहीं, मिलता जहां यादों की महफ़िलें सजीं! अब जो लम्हे हुए ज़िन्दगी की ही, उधेड़ बुन्न में गुम कहीं, रिश्तों के धागों को समेत लिया हम्ने, चाहतों में होने को गुम देखे सप्ने ! अब वक़्त तो कहीं आता न जाता है, खड़ा अटूट हर शक्स को देखे है, कई ज़माने आये और गुजरे यों, यादों की भीड़ में खोने को! शब्दों के अर्थ : मुज्महिल - थकावट , निर्बल अटूट -अखंडनीय शक्स - इंसान खामोश बातें
-मञ्जूषा हांडा बातें कुछ पल की, ख़त्म हुई पल भर में , अब सराहें तुझे ही, पल्कों की गिरती उठती चिलमन से! बातें पल भर की, गुमगश्ता पन्न्हों की किताब, दास्ताँ अधूरी, नाकाम तस्वीर का इज़्तिराब ! बातें नामुकाम्मिल , जैसे गुल्दान बगैर गुलाब , खुशनुमा रिश्तों की लम्बी बातें भी अधूरा सा जवाब ! बातें हों ऐसी , थम जाए वक़्त भी , और सुनें इन्हें , तमन्नाएँ कैसी , लब-ए-ख़ामोशी में भी , दिल के तार बजें ! अब जो बातें अधूरी , तो चलो यही बात हो पूरी , आवाज़ बनके , खामोशियों का गुनगुनाना जरूरी ! हौले हौले सुना दे , खामोश आँखों की बोली , और उल्फत का हमारी एहतेराम करले , ओ खामोश राही ... अर्थ : गुमगश्ता - गायब इज़्तिराब - व्याकुलता , व्यग्रता नामुकम्मिल - अपूर्ण उल्फत - प्यार एहतेराम- पूजना, इज्ज़त देना विचारों की बेल
-मञ्जूषा हांडा समँदर सुराही से उडेलता है , या फिर माही में बहता है यह राज़ ही आस-ए-सुकून , यही घर की राह को घर बनाता है शमा इबाबत का नूर बिखेरती है , या अंदरूनी स्याहियां समेट्ती है यह पहेली ही तमन्ना-ए-चैन , यही भक्ति और ज्ञान का भेद हटाती है आकाश यह चिलमन जैसा है , या चीर के इसे , रूह नूरानी चेहरा दिखाए यह राज़ ही अरमान-ए-अम्न , यही समंदर को आसमान में घुलाए बेफ़िक्र हवा ज़हनी खयाल फैलाती है , या नसों में बह विवेक इकठ्ठा करे यही पहेली अर्जु-ए-चैन , यही राही को राह-बर से मिलाए ! काइनात खुदा का ख्वाब है, या खुदा इंसानी ख़्वाबों में बस्ता है , यही राज़ मिटटी की सुगंध , अग्नि की तपिश , जीवों में प्राण ,यही तपस्या है! अर्थ : माही - मछली आस-ए-सुकून - अमन , शान्ति की चाहत इबादत - भगवान् की पूजा नूर - प्रकाश अंदरूनी - भीतरि स्याहियां - कालापन अरमान-ए-अम्न - अमन , शान्ति की चाहत कायिनात - संसार अर्जु-ए-चैन - - अमन , शान्ति की चाहत तमन्ना-ए-चैन - - अमन , शान्ति की चाहत चिलमन - पर्दा ज़हनी - बौद्धिक राह-बर - पथप्रदर्शक तपिश - उत्साह , जोश इंसानियत चाहे हर इंसान
-मंजूषा हांडा शर्म से भी ज्यादा आज आई शर्म, हर इंसान बैठा है आँखें मीचे कैसे कहें नेक कौम हैं हम , कोई तो इस बात का ज़रा खुलासा कीजे भयानक सन्नाटों की चीखें, आत्मा को झंकझोड़ रही हैं हर और की बेबसी से , खून के अश्कों में कई रूहें डूब रही हैं शैतानों की बेजाबिताघी बेविक़ार हरक़त ने ज़माने को बेज़ार किया अब तो माँ के पहलु में भी पनाह पाने का हक इन दरिंदों ने गवा दिया गम-ए-ज़माना यह खुला ज़ख्म खून बहा रहा है पर इस नासूर को भरने वाला कहीं मिलता नहीं है सुनहरी धूप है, पर चेहरा बादलों से घिरा है गर्द-ए-राह ने सूरज का साथ चूर चूर किया है खुरदरी हवाओं ने सावन को ऐसा झुल्सा दिया आस्मानी रौशनी ने भी अब गर्म लू बरसाने का फैसला किया इन मायुसियों को क्या नाम दें , बे-नाम ही रहने दो शायद ख्वाहिशों की भीड़ में गुम हो जाएँ यों माना , इंसानी ज़िन्दगी के तजुर्बों में गिले शिक्वे क़ैद रहते हैं पर इन्ही तजुर्बों के खौफ से कई आगोषे तस्सवुर फना होते हैं आज तनहा वो बहुत , टूटा मासूम सा ख्वाब जिसका है बेज़ार ज़माने की हकीकत ने एक और मासूमियत का क़त्ल किया है मगर हौस्ला अफज़ाई कर जिगर-ओ-नस के इस सफ़र पर , मर मर के जीना सिखा दिया एहसानात कई खुदा के , जिगर देके इस माहौल में भी आरजूओं का सिलसिला चलने दिया लेकिन आरजुओं के इस जोश में तुम यह न भूल जाना बडबडाना हमारी फितरत है , पर है तो यह बे-खयाली ही ना और ख़याल हैं जो निर्माण करें वही , है हमारी हकीकत जो पर शब्दों का चुनाव ही उजागर करे हकीकत को फिर यह भी सही, ख्यालों और हकीकत का तालमेल मुश्किल बहुत और इनके दर्मियाँ जो खला है , वोह सस्ती बहुत इस खला को हटाने का चैन बहुत मेहेंगा बिक्ता है अब तो हर पल यही तालमेल हासिल करने के इंतज़ार में निकलता है और वक्त ने भी अफसानों की तह को अभी नहीं है खोला पूरा , इसी में सचाई जाने कितनी जीत और आज़्माइशें हैं बाकी , हैं वक़्त के पहलु में समाई चलो यही सही, आओ बक्ष के ,बीते कल के ज़ख्म-ओ-निशान मिलके भरते हैं पुरानी यादें बदलके आने वाले कल को सुनहरा बनाने की जद्दोजहद में लगते हैं दुरुस्त यही, नाकामी छू नहीं सकती , फकत रहेंगे बुर्दबार हम इंसानियत को सुनहरे अक्षरों में लिखने का बेसबरी से करेंगे इंतज़ार हम यूँही रहेंगे इन्ही इरादों के आस पास हम , के इसी को हौसला-ए-बुलंदी कहेते हैं हम इन्ही इरादों के उजालों में उम्मीदों का समान जुटाते रहते हैं! ज़िन्दगी की उड़ान
-मञ्जूषा हांडा अंजानी आवाज़ें सुनती हूँ इन्पे भरोसा कैसे हो पाये बस दिल से दो बातें कर लूँ कल वक़्त जो थोडा मिल जाए मन के झरोखे खोल दूँ गम-ओ-खुशि का तजुर्बा हो पाये जो अश्कों की गंगा में बह लूँ जुनून-ओ-अमन का साहिल मिल जाए एहसासों को दिल में आने जाने दूँ सांसें दिल की खलाओं में भर पाएँ सब फिक्रें हवा में उदाऊं यूँ ज़िन्दगी की उड़ान काबू में आ जाए ! |
ख़यालों की बस्ती
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March 2014
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