मेरी कविता "इंसानियत चाहे हर इंसान", भोपाल की हिंदी इ-मैगज़ीन गर्भनाल के ७६
प्रकाशन में! यह कविता ४३ पन्न्हे पर है!
प्रकाशन में! यह कविता ४३ पन्न्हे पर है!
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मेरी कविता "इंसानियत चाहे हर इंसान", भोपाल की हिंदी इ-मैगज़ीन गर्भनाल के ७६ प्रकाशन में! यह कविता ४३ पन्न्हे पर है!
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वक़्त ...
-मञ्जूषा हांडा वोह वक़्त जो धुंध से घिरा है तन्हाई में हरपाल दीखता है, मुज्महिल हुए ढूँढें लम्हा यहीं, मिलता जहां यादों की महफ़िलें सजीं! अब जो लम्हे हुए ज़िन्दगी की ही, उधेड़ बुन्न में गुम कहीं, रिश्तों के धागों को समेत लिया हम्ने, चाहतों में होने को गुम देखे सप्ने ! अब वक़्त तो कहीं आता न जाता है, खड़ा अटूट हर शक्स को देखे है, कई ज़माने आये और गुजरे यों, यादों की भीड़ में खोने को! शब्दों के अर्थ : मुज्महिल - थकावट , निर्बल अटूट -अखंडनीय शक्स - इंसान खामोश बातें
-मञ्जूषा हांडा बातें कुछ पल की, ख़त्म हुई पल भर में , अब सराहें तुझे ही, पल्कों की गिरती उठती चिलमन से! बातें पल भर की, गुमगश्ता पन्न्हों की किताब, दास्ताँ अधूरी, नाकाम तस्वीर का इज़्तिराब ! बातें नामुकाम्मिल , जैसे गुल्दान बगैर गुलाब , खुशनुमा रिश्तों की लम्बी बातें भी अधूरा सा जवाब ! बातें हों ऐसी , थम जाए वक़्त भी , और सुनें इन्हें , तमन्नाएँ कैसी , लब-ए-ख़ामोशी में भी , दिल के तार बजें ! अब जो बातें अधूरी , तो चलो यही बात हो पूरी , आवाज़ बनके , खामोशियों का गुनगुनाना जरूरी ! हौले हौले सुना दे , खामोश आँखों की बोली , और उल्फत का हमारी एहतेराम करले , ओ खामोश राही ... अर्थ : गुमगश्ता - गायब इज़्तिराब - व्याकुलता , व्यग्रता नामुकम्मिल - अपूर्ण उल्फत - प्यार एहतेराम- पूजना, इज्ज़त देना |
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March 2014
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