ख्व़ाब को समेटने से पहले ख्वाब उड़ जाएँ तो क्या हो…
जो ख़्वाबों को पंख होते , हम हज़ारों उड़ान भरते ...
नए ख़्वाबों की जुस्त-जू में उलझ के ,ज़िन्दगी के कई रहस्य सुलझते !
Casual Thinking |
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सवाल जवाब ...
ख्व़ाब को समेटने से पहले ख्वाब उड़ जाएँ तो क्या हो… जो ख़्वाबों को पंख होते , हम हज़ारों उड़ान भरते ... नए ख़्वाबों की जुस्त-जू में उलझ के ,ज़िन्दगी के कई रहस्य सुलझते !
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जलाकर अपने दिल को, चौखट पे सजाये रखा है ...
तेरे आने को मैंने सुबह से , आँखों में बसाए रखा है ... यह सुबह का चिराग-ए-दिल अब जलके राख़ हो चला है तेरे आने की खुश-फहमियों ने चिराग-ए-शब् जलाए रखा है! ओरे पिया
-मञ्जूषा हांडा ओरे पिया , मोरे पिया , कैसे कहें तुझसे यह नैन दिल की यह बातें , लूटें हैं हरपाल का चैन ! बेचैनी फिरसे उठती है दिल में , जाने क्या ढूंढे यह दिल मुश्किल में सुध बुध गवाई , बेताब यूँ दिल हुआ है बेपनाह मुहोबत की पनाह ढूँढता है ओरे पिया , मोरे पिया , कैसे कहें तुझसे यह नैन दिल की यह बातें , लूटें हैं हरपाल का चैन ! चुपके से ओ पिया , ढूँढ लो मुझे तुम जानलो इस दिल का ऐहसास , के बे-आवाज़ हुए हम मुझे आज़मा लो , बेचैन ख्यालों को पहचानो निर्मल मुझे बनाकर , रवाँ दिल के अरमान करदो ओरे पिया , मोरे पिया , कैसे कहें तुझसे यह नैन दिल की यह बातें , लूटें हैं हरपाल का चैन ! बेताबी कैसी , जो दिल को दुखाये करलो दो मीठी बातें , जो हमको हसाएँ मेरे राहबर बनकर , इस राहगिर को सही राह चला दो राह-ए-तलब पे साथ चलके , राहत-ए-जान दिला दो ओरे पिया , मोरे पिया , कैसे कहें तुझसे यह नैन दिल की यह बातें , लूटें हैं हरपाल का चैन ! अर्थ: रवाँ - सम्पूर्ण करना राहबर - पथप्रदर्शक राहगीर - राही राह-ए-तलब - अभिलाषा का पथ राहत-ए-जान - जीन की खुशियाँ नई मुलाकात
-मञ्जूषा हांडा जाने यह कैसी बात हुई क्यों यह नई मुलाकात हुई माना ख्यालों में है यह मुलाकात पर लाई ज़िन्दगी में नए जज़बात तुमने यह क्या बात कही और हमने क्या कुछ ना सुना इस कहने सुनने की बातों ने ख्यालों का नया सिलसिला बुना अब तो ज़िन्दगी का नया एक सार जो लाये दूनिया में हरपाल बहार बस जीवन की धारा में बहते रहें और जी जाएँ तेरे ख्यालों से बंधे वही मोड़ है यह वही शाम का है पहर सदियों का एहसास है यह तेरे कहीं आस पास होने की लहर किस्साह-ए-ज़िन्दगी ही यह ख्यालों में मिलते हम शाम-ओ-सहर कभी तो मिलें ख्यालों से परे अब जिंदगी की यही आस है दिलबर आखरी छंद का एक और विवरण - अफसाना-ए-हस्ती ही यह ख्यालों में मिलते हम शाम-ओ-सहर कभी तो मिलें ख्यालों से परे अब जिंदगी की यही आस है बंदाह-परवर चन्द बिखरे अल्फाज़
-मञ्जूषा हांडा बिखरे कई अलफ़ाज़ मेज़ पे, एक इधर गिरा, कई उधर पड़े हैं यह बेफिज़ूल से, जबतक ख़याल निखर ना जाए इन्से! इन अल्फ़ाज़ों से बटोर लो, बाखूब मुतासिर जिन्से तुम, उन् चुंनिंदा लफ़्ज़ों को! फिर अपने दिल-ओ-दिमाग़ पे तुम, इन लफ़्ज़ों से तामीर करो, खूबसूरत सी तस्वीर-ऐ-तबस्सुम! यह ख्यालों की तस्वीर जो, रूह का हो सुकून-ऐ-तकल्लुम दिल-ऐ-आबाद का फरमान हो! ख़याल तो तामीर करें वही, है तुम्हारी हकीकत जो! पर लफ़्ज़ों का चुनाव ही, उजागर करे हकीकत को! ---------------------------------------- उर्दू शब्दों के अर्थ: तकल्लुम - बातचीत, वार्तालाप फरमान - आज्ञा तबस्सुम - मुस्कुराहट बाखूब मुतासिर - बहुत प्रिय बेखुदी
-मञ्जूषा हांडा अनोखी सी आज़्माइश यह, नये प्यार के एहसास का अनोखा यह तरीका है बेतुकी बातों का वक़्त बहुत है कीमती, के बेवजह इन लम्हों में प्यार होते देखा है! इन लम्हों के आगोश में दुनिया को भुला कर बेखुदी के इस आलम में होश ढूंड लेते हैं! बातों ही बातों में क्या कुछ न समझ कर, नए इस एहसास को दामन में छुपा लेते हैं! अनोखे इस एहसास से होता सदा है ताजुब यह, के कितने ही जज़बातों की आज़माइश अभी बाकी है! यह मदहोशी के पल ही होशमंद हैं के इस ही चाहत ने खुशियों का सिलसिला छुपा रखा है! तलाश
-मञ्जूषा हांडा खुद का पता ढूँढती हूँ, खुद से मिलने की ख्वाइश है कहते हैं, यह अना से जुडा हिक्मति मसला है खुद को जो पा लिया, मानो एहसास-ए-काएनात हो चला, पर यूँही, खुद की हस्ती पे अब हल्का हल्का शक़ सा होने लगा उसे ढूंड ने की ज़रूरत ही क्यूँ , जो कहीं है ही नहीं दर-हक़ीक़त, अधूरे खुद को तामीर करना ही सही! उर्दू शब्दों के अर्थ: अना - स्वयं, अहम हिक्मति - तत्वज्ञान संबंधी तामीर - रचना , ईजाद करना दर-हकीकत - सच्चाई दहकता हुआ ख़याल कोई इस पन्ने पे आ गिरा है ...
या फिर किसी नज़्म का दिल जला है ... ख़याल ही होगा , शाम-ओ-सहर इर्द गिर्द जो मंडराता है ... है यह मिस्ल-ए-ताबिंदगी , जो अर्श-ओ-फ़र्श के दरमियाँ बस्ती है ... नन्हे मेरे फरिश्ते
-मञ्जूषा हांडा घर के नन्हे, बड़े ही चुलबुले शैतानी भरी, नस नस में उन्के! मचाते हर वक़्त, उधम तूफ़ान पर प्रिय सबको, इनमें बस्ती सबकी जान! इन्हें गर्व बड़ा, अपनी बदमाशियों का पर बड़े जान लें, सीधा साधा मकसद इन्का इनकी इच्छा, खुशियाँ फेलाएं चारों और चाहे भई सांझ, दोपहर या फिर भोर! ये जो रूठें, जानलो शामत अब सबकी आई इन्की अप्रसन्नता, घर आँगन में आफत लाई! लाल पीली आँखें इन्की, नाक पे बैठा इन्के गुस्सा दरअसल अन्दर से ये मोम, बाहर का हठ सब झूठा! सबका ध्यान हो इन पर केन्द्रित, ऐसी इनकी मंशा सबको आकृष्ट किये बिना, सुकून इन्हें ना मिल्ता! थोडा लाड़, ढेर प्यार, इन्हें शांत करने का येही इल़ाज भलाई सबकी इसी में मानो, जब रहे इनके दुरुस्त मिज़ाज़! ओ नन्हे मेरे फरिश्ते, तुझसे है दिल का रिश्ता तुझसे ही ज़िन्दगी है, इन साँसों के चलने का, तुझसे नाता! नाज़ुक से फूल मेरे, तुझसे बहार इस चमन में खुशबू से तेरी मेहेके, यह गुलिस्तां हर मौसम में! दुआ यह मेरे रब से, मासूमियत तेरी संजोके, संतुष्ट जीवन की धारा, बरकरार यूँही रखे! ओ नन्ही मेरी परी तुम, आई हो तुम जहां से झिलमिल सितारों का आँगन होगा,प्रेम बटोरा तुमने वहाँ पे! रिमझिम बरसती उदारता भी,ले आई हो तुम वहाँ से, अनुराग का प्रतिबिम्भ बनकर,करुना की परिकाष्टटा तुम्ही से! साये में उसके ...
-मञ्जूषा हांडा अपनी रोज़-मरहा की चहल-कदमी पे जो निकले तो एक नन्हे से पौधे पर पड़ी यह नज़र साए में उसको , दरख़्त के अपने मुश्किल-कुषा जो उसका , पनपता पाया बबेफिकर ! तभी यकायक , यह खायाल आया ज़हन में कुछ शब्-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल तो यह निखरेगा ज़रूर होगा मज़बूत दरख़्त की छत्र छाया में जो हुआ , आसरा-ए-रहमत नसीब , वाली से खूब ! पर बदलती आब-ओ-हवा , बड़ते पौधे को अखरेगी जरूर मुनासिब आफताब की रौशनी की गैर हाज़री की खलिश और निग्रान की बंदिश , उसे बेज़ार ही न करदे हुज़ूर यूँ वक़्त के साथ वह निढाल जो हुआ , भर जायेगी उसमें रंजिश ! समय का तक़ाज़ा है, लखते-जिगर की कामयाबी मुम्किन है तभी जो खुली फिज़ा में लहराने , जी खोल के दम भरने को है वह तैयार पर दुरुस्त तो यही , राबिता जिसका काफ़िला- सालार के साथ, आसान है सिरात वही नाकामी छू नहीं सक्क्ती , जब उम्मीद वाबस्ता ही नहीं दुनिया से , फ़क़त रहो बुर्दबार ! अर्थ: मुश्किल-कुषा - मुसीबतों को दूर करने वाला, हज़रात अली का उपपद शब्-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल - रात और दिन और महीने और साल खलिश - चिढ बेज़ार - अप्रसन्न करना निग्रान - निगहबान , संरक्षक वाली - मुखिया, संरक्षक, परमेश्वर निढाल - निःशब्द , कमज़ोर रंजिश - संताप , अरूचिकर राबिता - नाता , रिश्ता वाबस्ता - संघटित होना, सम्बंधित , बंधे होना सिरात - रास्ता क़ाफ़िला- सलार - कारवाँ का मुखिया फ़क़त - सिर्फ बुर्दबार - धैर्यवान , सहनशील |
ख़यालों की बस्ती
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March 2014
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