इश्क-ए -खुदाई
-मञ्जूषा हांडा
अब ना रंजिश ही कोई
ना कोई बात अनकही
बे-आसरा से ख़याल यहीं
उन्में डूबी खुश्क तन्हाई
पर दिल के साज़ बजते हैं,
शिकस्त-ए-साज़ होके भी
जुनून-ए-इश्क में अर्श-ए-ज़िम रहने दें
मीठे दर्द का साथ ही सही
माना, इश्क की गहराई को नापे
यह पहर जुदाई के
पर एहसास तुम्हें ना पाने के,
सबसे अभागे पल जुदाई के
ले चलो खयालों की बस्ती में
बसते हो तुम जिन खयालों में
उपजे बीज खयालों के, हवा-ए-बहार ले आएँ
कई बाग़ छिपे इस दिल में
सपने, यह पाक तस्सव्वुर की कारीगरी,
रचें जब हसरतें कुछ और ही पाने की
है कोशिश यही, ढूँढ आशाएँ अधूरी,
उम्मीद के शरारों से ठन्डे दिलों को गरमाने की
जज़्बा-ए-इश्क की गहराई में
जाने हम डूबे कबसे
वो हज़ारों दिल जो लिए हुए,
ख्वाहिशों की दौलत में इज़ाफ़े बड़े हुए
हकीक़त को अपनी चिलमन में छिपाया
पर दिल से फरेब करना ना आया
सर-ए-आईना अक्स ने सवाल उठाया,
तू हम-ता क्यों ना बन पाया
तपिश तेरी एक आहट की
बस एक झलक दिख जाए कहीं
कड़ियाँ जुड़ जायेंगी ,
जो अधूरी आशाओं में हैं जकड़ी
वाबस्ता तुम्हारे हुस्न से
पल्कों की चिल्मन है आज भी
गम हैं छुपे छुपे से
छुपी छुपी सी है तन्हाई
तुम्हारे सपनों के इन्द्रधनुष,
जो इस दिल ने हैं दिखलाये
गम हुए सतरंगी,
और सतरंगी सी तन्हाई
मुहोबत का किस्सा यूँही,
है हुआ मशहूर नहीं
बे-अंदाज़ा बक्शे वही
है हमदर्दी जिसकी आदत सी बन गयी
-मञ्जूषा हांडा
अब ना रंजिश ही कोई
ना कोई बात अनकही
बे-आसरा से ख़याल यहीं
उन्में डूबी खुश्क तन्हाई
पर दिल के साज़ बजते हैं,
शिकस्त-ए-साज़ होके भी
जुनून-ए-इश्क में अर्श-ए-ज़िम रहने दें
मीठे दर्द का साथ ही सही
माना, इश्क की गहराई को नापे
यह पहर जुदाई के
पर एहसास तुम्हें ना पाने के,
सबसे अभागे पल जुदाई के
ले चलो खयालों की बस्ती में
बसते हो तुम जिन खयालों में
उपजे बीज खयालों के, हवा-ए-बहार ले आएँ
कई बाग़ छिपे इस दिल में
सपने, यह पाक तस्सव्वुर की कारीगरी,
रचें जब हसरतें कुछ और ही पाने की
है कोशिश यही, ढूँढ आशाएँ अधूरी,
उम्मीद के शरारों से ठन्डे दिलों को गरमाने की
जज़्बा-ए-इश्क की गहराई में
जाने हम डूबे कबसे
वो हज़ारों दिल जो लिए हुए,
ख्वाहिशों की दौलत में इज़ाफ़े बड़े हुए
हकीक़त को अपनी चिलमन में छिपाया
पर दिल से फरेब करना ना आया
सर-ए-आईना अक्स ने सवाल उठाया,
तू हम-ता क्यों ना बन पाया
तपिश तेरी एक आहट की
बस एक झलक दिख जाए कहीं
कड़ियाँ जुड़ जायेंगी ,
जो अधूरी आशाओं में हैं जकड़ी
वाबस्ता तुम्हारे हुस्न से
पल्कों की चिल्मन है आज भी
गम हैं छुपे छुपे से
छुपी छुपी सी है तन्हाई
तुम्हारे सपनों के इन्द्रधनुष,
जो इस दिल ने हैं दिखलाये
गम हुए सतरंगी,
और सतरंगी सी तन्हाई
मुहोबत का किस्सा यूँही,
है हुआ मशहूर नहीं
बे-अंदाज़ा बक्शे वही
है हमदर्दी जिसकी आदत सी बन गयी