वक़्त ...
-मञ्जूषा हांडा
वोह वक़्त जो धुंध से घिरा है
तन्हाई में हरपाल दीखता है,
मुज्महिल हुए ढूँढें लम्हा यहीं,
मिलता जहां यादों की महफ़िलें सजीं!
अब जो लम्हे हुए ज़िन्दगी की ही,
उधेड़ बुन्न में गुम कहीं,
रिश्तों के धागों को समेत लिया हम्ने,
चाहतों में होने को गुम देखे सप्ने !
अब वक़्त तो कहीं आता न जाता है,
खड़ा अटूट हर शक्स को देखे है,
कई ज़माने आये और गुजरे यों,
यादों की भीड़ में खोने को!
शब्दों के अर्थ :
मुज्महिल - थकावट , निर्बल
अटूट -अखंडनीय
शक्स - इंसान
-मञ्जूषा हांडा
वोह वक़्त जो धुंध से घिरा है
तन्हाई में हरपाल दीखता है,
मुज्महिल हुए ढूँढें लम्हा यहीं,
मिलता जहां यादों की महफ़िलें सजीं!
अब जो लम्हे हुए ज़िन्दगी की ही,
उधेड़ बुन्न में गुम कहीं,
रिश्तों के धागों को समेत लिया हम्ने,
चाहतों में होने को गुम देखे सप्ने !
अब वक़्त तो कहीं आता न जाता है,
खड़ा अटूट हर शक्स को देखे है,
कई ज़माने आये और गुजरे यों,
यादों की भीड़ में खोने को!
शब्दों के अर्थ :
मुज्महिल - थकावट , निर्बल
अटूट -अखंडनीय
शक्स - इंसान